BariBlockChain - crypto news

collapse
...
Home / Economy / भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध: व्यापार संबंधों पर बढ़ता दबाव और बातचीत की राह

भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध: व्यापार संबंधों पर बढ़ता दबाव और बातचीत की राह

Sep 24, 2025  Devyn Ryan  30 views
भारत-अमेरिका टैरिफ युद्ध: व्यापार संबंधों पर बढ़ता दबाव और बातचीत की राह

परिचय: एक जटिल व्यापार संबंध

 

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के बीच संबंध हमेशा से बहुआयामी रहे हैं, जिसमें रक्षा सहयोग, भू-राजनीतिक हित और आर्थिक साझेदारी शामिल है। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से टैरिफ (आयात शुल्क) के मुद्दे पर व्यापारिक तनाव एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'टैरिफ रेसिप्रोसिटी' (पारस्परिक शुल्क) की नीति और भारत के रूसी तेल खरीद पर लगाए गए अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क ने इस व्यापारिक रिश्ते को एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है, जिसे अब "टैरिफ युद्ध" के रूप में देखा जा रहा है।

 

वर्तमान टैरिफ स्थिति: 50% का दोहरा झटका

 

हाल के घटनाक्रमों में, अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाए गए शुल्क में भारी वृद्धि हुई है।

  1. पारस्परिक शुल्क (Reciprocal Tariffs): अगस्त 2025 की शुरुआत में, भारत के कुछ उत्पादों पर 25% का पारस्परिक शुल्क लगाया गया था। यह अमेरिका के अनुसार भारत द्वारा कुछ अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए उच्च आयात शुल्क का जवाब था।
  2. दंडात्मक शुल्क (Penal Tariffs): अगस्त 2025 के अंत में, अमेरिका ने भारत के रूसी तेल खरीद को यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को वित्तीय सहायता देने का हवाला देते हुए, अतिरिक्त 25% दंडात्मक शुल्क लगा दिया।

इस दोहरे झटके के परिणामस्वरूप, भारत के कई प्रमुख निर्यात उत्पादों पर अब कुल 50% तक का उच्च शुल्क लग रहा है।

 

भारतीय निर्यात पर टैरिफ का प्रभाव

 

50% टैरिफ का भारतीय निर्यातकों पर गंभीर और व्यापक प्रभाव पड़ा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के विश्लेषण के अनुसार, मई 2025 से अगस्त 2025 के बीच अमेरिका को भारत का कुल निर्यात 22.2% तक गिर गया है, जो $8.8 बिलियन से घटकर $6.9 बिलियन हो गया है।

 

1. श्रम-गहन क्षेत्रों पर सबसे अधिक मार

 

सबसे अधिक प्रभावित वे क्षेत्र हैं जो भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करते हैं और मूल्य-संवेदनशील हैं:

  • समुद्री भोजन (Shrimp): निर्यात में 43.8% की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
  • परिधान और वस्त्र (Garments & Textiles): इस क्षेत्र में भी 14.3% तक की महत्वपूर्ण गिरावट आई है, क्योंकि उच्च शुल्क के कारण भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो गए हैं।
  • रत्न और आभूषण (Gems & Jewellery): इस क्षेत्र के निर्यात में भी 9.3% की कमी देखी गई है।

 

2. शुल्क-मुक्त उत्पादों में अप्रत्याशित गिरावट

 

सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि जिन उत्पादों को शुल्क से छूट मिली हुई है, उनमें भी निर्यात में भारी गिरावट आई है।

  • स्मार्टफोन: टैरिफ-मुक्त होने के बावजूद, स्मार्टफोन निर्यात में 58% की बड़ी गिरावट आई है। GTRI ने इसे एक "पहेली" बताया है और इसके कारणों की तत्काल जांच की मांग की है।
  • फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स: ये उत्पाद भारत के प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनकी निर्यात वृद्धि भी प्रभावित हुई है।

यह गिरावट इस ओर इशारा करती है कि टैरिफ के अलावा, अमेरिकी औद्योगिक मांग में कमी और संभावित रूप से उच्च शुल्क से बचने के लिए कंपनियों द्वारा पहले ही माल स्टॉक कर लेने जैसे अन्य कारक भी काम कर रहे हैं।

 

वार्ता की राह और भारत की मुख्य चिंताएं

 

टैरिफ के तनाव के बावजूद, दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ताएं फिर से शुरू हुई हैं, जो एक सकारात्मक संकेत है। सितंबर 2025 में, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय के एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया।

 

1. वार्ता का मुख्य केंद्र

 

  • दंडात्मक शुल्क हटाना: भारत की मुख्य मांग यह है कि रूसी तेल खरीद पर लगाए गए अतिरिक्त 25% दंडात्मक शुल्क को तुरंत हटाया जाए। भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन ने नवंबर 2025 तक इस मुद्दे के समाधान की उम्मीद जताई है।
  • पारस्परिक शुल्क में कमी: दोनों पक्ष 25% के पारस्परिक शुल्क को घटाकर 10-15% के बीच लाने पर भी विचार कर रहे हैं।
  • द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA): वार्ता का अंतिम लक्ष्य एक संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को अंतिम रूप देना है।

 

2. भारत की 'रेड लाइन्स' (Red Lines)

 

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में समझौता नहीं करेगा:

  • कृषि और डेयरी: भारत बड़े पैमाने पर किसानों की आजीविका की रक्षा के लिए अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों को व्यापक बाजार पहुंच देने का विरोध कर रहा है।
  • नियामक संप्रभुता: भारत अपने आंतरिक नियामक स्वायत्तता को बनाए रखने पर दृढ़ है।
  • क्रूड ऑयल खरीद: भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी भी देश से तेल खरीदने की अपनी संप्रभुता पर समझौता नहीं करेगा।

 

दीर्घकालिक निहितार्थ और आगे की राह

 

भारत-अमेरिका टैरिफ विवाद द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा है।

  • निर्यात टोकरी का विविधीकरण (Diversification): टैरिफ के झटके ने भारत की निर्यात टोकरी की संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को केवल अल्पकालिक राहत की बजाय, अपनी अर्थव्यवस्था को श्रम-गहन, निम्न-तकनीकी निर्यात से उच्च-मूल्य, उच्च-तकनीकी विनिर्माण की ओर ले जाने की आवश्यकता है।
  • सरकारी हस्तक्षेप: उद्योग संघों ने सरकार से तत्काल सहायता की मांग की है, जिसमें ब्याज समानीकरण योजना सब्सिडी, शुल्क वापसी प्रक्रियाओं में तेजी लाना और तरलता सहायता शामिल है, ताकि व्यापक रोजगार हानि और विनिर्माण इकाइयों को बंद होने से रोका जा सके।
  • भू-राजनीति बनाम व्यापार: यह टैरिफ विवाद उस जटिलता को भी दर्शाता है जब भू-राजनीतिक हित (जैसे रूस से तेल खरीद) व्यापारिक हितों के साथ टकराते हैं।

 

निष्कर्ष

 

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन उच्च-स्तरीय वार्ताएं जारी रहना एक सकारात्मक संकेत है। 50% टैरिफ का सीधा परिणाम भारतीय निर्यात में गिरावट के रूप में सामने आया है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है। इस 'टैरिफ युद्ध' का समाधान दोनों देशों के निर्यातकों और अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्थायी समाधान केवल आपसी लाभ, विश्वास और व्यापारिक संप्रभुता के सम्मान पर आधारित संतुलित समझौते से ही संभव हो पाएगा। भारत के लिए यह समय है कि वह अपने व्यापार ढांचे में संरचनात्मक सुधारों को गति दे, ताकि वह वैश्विक संरक्षणवाद के झटकों को झेल सके और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य की ओर मजबूती से बढ़ सके।


Share:

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Your experience on this site will be improved by allowing cookies Cookie Policy