राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्वर लाल डूडी का निधन
राजस्थान की राजनीति के लिए एक दुखद खबर है। राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष, रामेश्वर लाल डूडी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। वह पिछले लगभग दो साल से कोमा में थे। उनके निधन से राज्य के राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई है।
रामेश्वर लाल डूडी: एक किसान नेता का सफर
रामेश्वर लाल डूडी राजस्थान की राजनीति में एक कद्दावर और ज़मीनी नेता के रूप में जाने जाते थे। उनका राजनीतिक सफर और योगदान इस प्रकार रहा:
- ज़मीनी पकड़: डूडी मुख्य रूप से किसान नेता के रूप में विख्यात थे। वह राजस्थान के ग्रामीण और किसान वर्ग के बीच गहरी पैठ रखते थे।
- नेता प्रतिपक्ष: वह राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर रह चुके थे, जहां उन्होंने विपक्ष की भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाया।
- संसदीय करियर: डूडी लूणकरणसर और नोखा जैसी विधानसभा सीटों से कई बार विधायक चुने गए। इसके अलावा, वह बीकानेर लोकसभा सीट से भी सांसद रह चुके थे।
- सहकारी आंदोलन: उन्होंने राजस्थान के सहकारी आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके माध्यम से उन्होंने किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में काम किया।
दो साल का संघर्ष
डूडी अगस्त 2023 में ब्रेन हेमरेज (मस्तिष्क रक्तस्राव) के शिकार हो गए थे, जिसके बाद उन्हें जयपुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुरुआती इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स (AIIMS) में भी ले जाया गया। हालांकि, उनकी स्थिति गंभीर बनी रही और वह लंबे समय तक कोमा में रहे। दो साल तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करने के बाद, आज उनका निधन हो गया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और श्रद्धांजलि
उनके निधन पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कई नेताओं ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।
- मुख्यमंत्री एवं राजनीतिक हस्तियां: मुख्यमंत्री (मौजूदा समय के) सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके निधन को राजस्थान की राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति बताया है। सभी ने उनके सामाजिक और राजनीतिक योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
- कांग्रेस पार्टी: कांग्रेस पार्टी ने अपने एक महत्वपूर्ण स्तंभ को खो दिया है। पार्टी नेताओं ने उनके निधन को एक अपूरणीय क्षति बताया है, खासकर किसानों और पिछड़े वर्गों के लिए उनके संघर्ष को याद किया जा रहा है।
रामेश्वर लाल डूडी का निधन राजस्थान की उस राजनीति में एक बड़ा शून्य छोड़ गया है, जो ज़मीन से जुड़े नेताओं के मूल्यों और संघर्षों पर टिकी थी।
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